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मन की बात

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नंदनी की नई-नई शादी हुई थी। वह बहुत खुश थी ।उसे बहुत अच्छा परिवार मिला था ।सासू मां जैसे मां का ही रूप थी। ससुर में भी उसे पिता दिखाई देते थे और सुमित तो जैसे उसके सपनों के राजकुमार थे। वह बिना कहे उसके मन की बात समझ जाते थे ।उसे खुश रखने का हर प्रयास करते थे ।
ऐसे ही खुशी खुशी दिन बीत रहे थे ।अचानक ऐसी घटना घटी कि जिससे नंदिनी का हंसता खेलता घर उजड़ गया। सुमित का एक एक्सीडेंट में देहांत हो गया। नंदनी तो जैसे पत्थर हो गई थी। ना कुछ बोलती ,नाही खाना खाती ना ही, किसी से कोई बात कह पाती। सुमित के माता पिता का भी बहुत बुरा हाल था लेकिन वह नंदिनी के सामने बड़ी हिम्मत के साथ में रहते थे और ताकि उसे कोई दुख ना पहुंचे।
सुमित की मां – बेटा कुछ खा लो , नहीं खाओगी तो कैसे जिओगी?
नंदिनी -मां जी मेरी तो भूखी ही मर गई है ।मैं अब जी के क्या करूंगी?
नंदनी की दशा देखकर एक दिन सुमित के माता-पिता नंदिनी के मायके पहुंचे ।और नंदनी के माता-पिता से नंदिनी की सास ने कहा – नंदिनी का का यह दुख हमें देखा नहीं जाता है और अभी तो उसके सामने पहाड़ जैसी लंबी जिंदगी पड़ी है ।वह अकेली कैसे यह बीता पाएगी ?हम नंदिनी का पुनर्विवाह करना चाहते हैं ।अगर आप लोग इजाजत दें तो, हम माता-पिता बनकर उसका कन्यादान करेंगे ।
यह बात सुनकर नंदनी की मां ने कहा -आपने तो हमारे मन की बात कह दी ।हम भी यही सोच रहे थे ,परंतु आप से बात करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे थे ।नंदनी बहुत किस्मत वाली है कि उसको आप लोगों जैसे सास ससुर मिले जो उसे बेटी समझते हैं ।
फिर क्या था एक अच्छा लड़का देखकर नंदिनी का अच्छे घर में उसके साथ ससुर ने पुनर्विवाह करवा दिया। और नंदिनी को एक और माता पिता और मायका मिल गया।

डॉ दीपिका राव बांसवाड़ा राजस्थान
MO. No. 9983017295

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