Home Story मानवता का यह कैसा रंग?

मानवता का यह कैसा रंग?

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सुबह का वक्त नौकरीपेशा स्त्रियों के लिए हमेशा ही कम पड जाता हैं। मैं अपने घर के काम निपटा कर स्कूटर से निकल पडी थी कि अचानक गली के मोड पर डरा देने वाला मंजर देखकर हाथ अपने आप ब्रेक पर पहुंच गया। सामने तीन हट्टे कट्टे कुत्ते एक बिल्ली के शिकार में जुटे थे। बहुत ही दिल दहलाने वाला दृष्य था। एक कुत्ते ने बिल्ली को आगे से पकडा हुआ था और दूसरे ने पीछे से जकड रखा था। तीसरा भौंक-भौंक कर भीड को दूर रहने का आदेष सुना रहा था। कुछ लोग जो सुबह की सैर को निकले हुए थे या सैर कर लौट रहे थे वो बिल्ली को बचाने का प्रयास कर रहे थे। कोई कुत्तों पर पत्थर फेंक रहा था तो कोई चिल्ला चिल्लाकर उन्हें डराने की कोशिश कर रहा था। मैं भी अनायास उस भीड का हिस्सा ही बन गई और कब मैं भी चिल्लाने लगी कुछ होश नहीं। बिल्ली पूरा जोर लगाकर छूटने का प्रयास कर रही थी। उसने अभी भी हार नहीं मानी थी। वो अपना पूरा जोर छूटने में लगा रही थी। छोटे छोटे पत्थरों का कुत्तों पर कोई असर नहीं हो रहा था। वहीं पास ही पडीं पेड की एक टूटी डाल एक आदमी के हाथ लग गई। जैसे ही उस आदमी ने वह डाली उठाई सभी एक साथ एक साथ चिल्लाये–मारो-मारो। उस आदमी ने निशाना साध कर डंडा चलाया जो सीधे जाकर एक कुत्ते के टांग पर लगा । इस वार से कुत्ता बिलबिला गया और बिल्ली पर उसकी पकड ढीली पड गई। उधर दूसरा कुत्ता भी इस वार से डर गया और उसने भी बिल्ली का छोड दिया। बिल्ली तो पहले ही छूटने का जी तोड प्रयास कर रही थी सो जान बचाकर सरपट भागी। बिल्ली के भागते ही सभी ने राहत की सांँस ली। मुझे भी ऐसा लगा जैसे मेरा कोई अपना मौत के मुंँह से निकल आया हो। प्रभु का शुक्रिया करते हुए मैंने स्कूटर र्स्टाट किया और अपने गन्तव्य की ओर बढ चली। मैं चल तो पडी पर वो नजारा काफी देर तक मेरी आंँखों के आगे नाचता रहा।
उस भयानक दृष्य ने जैसे मेरे मस्तिष्क को सुन्न सा कर दिया था। जब दिमाग ने कुछ काम करना शुरू किया तो ख्याल आया , यदि वहांँ कुत्तों की जगह कुछ गुन्डे होते और बिल्ली की जगह कोई युवती होती तब भी क्या ये लोग उसे बचाने के लिए ऐसे एकजुट होकर उसे बचाने का प्रयास करते या फिर मोबाइल पर वीडियो बना रहे होते?

स्नेह प्रभा परनामी 

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