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कोरोना सिखा भी रहा

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कोरोना सिखा भी रहा

इस समय संपूर्ण विश्व कोरोना महामारी की चपेट में है, जो कि कम या अधिक हर देश- हर शहर तक फैल चुकी है। अब हम सब अच्छे से समझ चुके हैं कि सावधानी ही बचाव है। सरकार, गैर सरकारी संगठन और मीडिया द्वारा यह बताया जा रहा है कि मुँह ढक कर रहना है, अनावश्यक रूप से यहाँ-वहाँ नहीं घूमना है, हाथों को बार-बार धोना है और व्यक्तिगत साफ- सफाई का बहुत ध्यान रखना है।

इन सब के चलते कुछ पुराने परंपरागत नियम-विचार पुनर्जीवित होते दिख रहे हैं। हमारे देश की संस्कृति में कुछ बातें पीढ़ी दर पीढ़ी चलती आई थी- जैसे जूते-चप्पल घर के बाहर ही उतारना, हाथ-पैर धो कर घर में प्रवेश करना, किसी का झूठा न खाना, अनावश्यक शारीरिक निकटता से बचना और मांसाहार तो सर्वथा त्याज्य था। दक्षिण भारत में तो नहा कर ही घर में जाने का रिवाज़ था। कुछ विशेष क्षेत्रों और कुछ संप्रदायों में तो हमेशा से ही मुँह ढक कर खाने की परंपरा थी, जिससे कीटाणु शरीर में प्रवेश न करें। आयुर्वेद में बुखार होने पर तुलसी, काली मिर्च, अदरक, दालचीनी, हल्दी, गिलोय, अश्वगंधा, के काढ़े दिए जाते रहे हैं। योग, ध्यान और स्वास्थ्य के नियम भारतीय संस्कृति के अभिन्न आधार रहे हैं । यह दौर, यह समय इन्हें रूढ़िवादिता और पुरातन पंथी प्रथाएँ कहने वालों के सामने प्रत्यक्ष- प्रमाण है, जहाँ इन्हीं सात्विक प्रतिमाओं की पुनर्स्था

पना हो रही है।

नई पीढ़ी के लोग पाश्चात्य सभ्यता के प्रभाव में आकर शराब पीना, माँसाहार झूठा खाने में परहेज न करना, घर में जूते पहन कर आ जाना जैसी बातों से कोई गुरेज नहीं कर रहे थे। यहाँ तक कि घरों में आने-जाने वाले कार्य सहायकों की भी स्वच्छता पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता था। इस महामारी के फैलने के बाद परिवार और समाज में लोगों में अच्छी आदतों का प्रचार हो रहा है। क्योंकि वर्तमान में ” हमें कोरोना के साथ ही जीना है ” वाले मंत्र को जपते हुए आगे बढ़ना है, इसकी वैक्सीन के बनने और जन-जन तक उपलब्ध होने तक।

इसका एक अच्छा

पक्ष यह है कि पारिवारिक और सामाजिक उत्सव- समारोह सादगीपूर्ण और सीमित सदस्यों के साथ मनाए जा रहे हैं। जो प्रथाएँ केवल परिपाटी के कारण निभाई जा रही थी और औचित्य थी उन पर भी लगाम लगी है। हम चाहे तो भविष्य के लिए उन्हें त्यागकर कीमती समय और बहुत कुछ बचाया जा सकता है।

तो कोरोनावायरस फिर से सिखा रहा है कि बुरी आदतों को छोड़ना है। सादगी और साफ- सफाई की आदतों को अपनाना है। हमारी जागरूकता हाथ धोने तक सीमित नहीं है। आज लगभग सभी जागरूक घरों में ऑफिस या बाज़ार से लौटने पर नहा कर ही घर में प्रवेश किया जाता है। बाजार से आए सामान यहाँ तक कि सब्जी- फलों को नमक, सिरका या क्लीनर से साफ कर उपयोग किया जा रहा है। बाज़ार के खाने से परहेज किया जा रहा है जो कि निश्चित रूप से स्वास्थ्य को हानि पहुँ चाते हैं। योग और व्यायाम के प्रति जागरूकता भी बढ़ गई है। इसका उज्जवल पक्ष यह है कि जो बच्चे और नव पीढ़ी के लोग यह देख और सीख रहे हैं, वह निश्चित रूप से इसे हमेशा अपनाए ही रखेंगे और अपने जीवन में अवश्य लाभ पाएँगे।

टीना रावल
जयपुर

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