एक समय – जब यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता।
यह अमर वाक्य भारतीय संस्कृति में रहता था गूंजता।।
आज भारत देश में नारी की स्थिति किसे नहीं है ज्ञात।
अधम और दुराचारी पुरुष देते रहते उसे सदा आघात।।
अधर्मी करते रहते कुचेष्टा तनिक न इनको है यह भान।
धर्म पर विपत्ति देख सदा प्रभु आए हैं क्या नहीं है ज्ञान।।
गीता के उपदेश में हमको मिलता इसका सहज साक्ष्य ।
गीता में श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा था आदर्श वाक्य।।
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहं।।
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥
जिस युग असत् की वृद्धि और सत् पर हुआ अत्याचार।
दुर्गा काली शक्ति ने अवतरित
हो किया असुर संहार।।
ईश्वर भी तब ही रक्षक है जब नारी स्वयं हो चैतन्य।
जागृत करो निज आत्मा नारी
प्रभु की है कृपा अनन्य।।
रंजना माथुर
अजमेर (राजस्थान )