Home Poetry ” झूला “

” झूला “

0

सावन के झूले पड़े सखी
नन्ही नन्ही बूंदो की फुहार
झड़ी मन को हर्षात है।
‘पी ‘ तीज का झूला ऐसा डालना
जिस में समा जाए सारा संसार।
डाली हो चंदन की हो
जो फैली हो नभ के पार ।
सतरंगी रेशम की डोरी ह
जिस का न हो कोई पारावार।
एक पेंग जाए मंगल ग्रह
के द्वार,
दूजा एकदम अन्तरिक्ष के पार।
सावन के गीत गाते हुए करें
हँसी ठिठोली और धमाल।
घेवर की सौंधी खुशबू से
महक रहा सारी बगिया
खाने खिलाने की हो रही
मनुहार।
” नाग “

NO COMMENTS

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Exit mobile version