आओ कृष्ण धरा पर
फैली यहाँ अराजकता ज़र्रे ज़र्रे पर
कहाँ तो केवल एक कंस का करना था वध
आज तो हर इंसा के मन में समाया जरासन्ध
आज एक नहीं अनेक कंसों का हुजूम है
दुर्योधन दुशासन के समूह ही समूह है
आवश्यकता तो तुम्हारीआज है
हर कंठ से निकलती यही आवाज़ है
एक द्रौपदी के अपमान पर तो चकित थी दुनिया सारी
किंतु आज तो हर गली चौराहे पर बिकती है नारी
प्रतिशोध के रुप में हुआ था महाभारत का संग्राम
शोषित नारी की पीड़ा दे न सका आज कुछ पैग़ाम
दहेज हत्या बलात्कार की घटनाएँ हो गई आम
बन सुर्ख़ियाँ केवल बढ़ाती अख़बार के दाम
जनता मूक प्रशासन पंगु सब लगते लाचार
दया ममतामयी दिल दिखते आज केवल दो चार
आओ कृष्ण धरा पर
बहा दो सरस प्रेम की धारा राधा सा प्रेम यशोदा सा ममत्व
व्याप्त हो सम्पूर्ण दुनिया मे अनुराग एवं अपनत्व
स्वच्छ राजनीति की हो चहुं ओर फुहार
लौटा दो हमें नेकां ईमान एवं सदाचार
आज अपने जन्मदिवस पर दे दो यह उपहार
जग में बस रह जाये प्यार ही प्यार