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वैक्स म्यूज़ियम (Wax Museum)

कुछ दिन बाद- क्नाटीकट शहर- से स्वाति आई, वह जेठौती है, बहुत मिलनसार और मोहब्बत वाली लड़की है, साथ ही मुखर भी। फिर तो गदर होना ही था। हँसी- ठट्ठे- कहकहे, तेज़- तेज़ बोलना- चालना, खाना- पीना, गप्पें, पिक्चर- संगीत, घर गूँज उठा, किस कदर रौनक छा गई, तरह- तरह के प्रोग्राम बने। घर में दो- चार बच्चे ऐसे होने ही चाहिये, ताकि घर -घर- जैसा लगे। स्वाति, भतीजा बेलू व मैं न्यूयार्क घूमने निकले। मुख्य बाज़ार से बस, फिर सबवे ट्रेन से मैनहैटन पहुँचे। स्टेशन से बाहर आये तो मै एकबारगी अपना सिर नीचा करना ही भूल गयी, ऊपर, और ऊपर, और ऊपर देखती चली गयी, देखते- देखते गरदन जैसे पीछे की तरफ़ दोहरी हो गयी। बेहद ऊँची इमारत थी। कितनी देर तक ठिठकी उसे ही देखती रही, फिर जो नज़र इधर- उधर घुमायी तो बड़ी- बड़ी जगमगाती इमारतों को देख कर आँखें ही चौधिया गयी, ऐसी कि देखते रहो -देखते रहो।
सामने ही वैक्स म्यूज़ियम था तो उसे ही देखने का निश्चय किया और 25-25 डॉलर के टिकट खरीदे। मुख्य दरवाज़े पर हॉलीवुड का एक ऐक्टर खड़ा था, मैंने सोचा कि वह सूचना देने वाला कर्मचारी था, लोग उसे घेरे हुये थे, अचानक वह हिला, जैसे मूर्ति हिलती है। मैं समझ गयी कि यह कितनी सुन्दर कला थी, यह भी कि भीतर क्या देखने को मिलेगा। सीढ़ियों पर ब्रिटिश कॉमेडियन बिनी हिल, पहली मंजिल पर स्केटिंग का अमैरिकन खिलाड़ी माइकिल क्वान, न्यूयार्क का भूतपूर्व मेयर रूडी गुइलियानी के पुतले थे, उनके साथ फोटो खिंचाया, फिर ऐलीवेटर ने नौंवीं मंजिल पर छोड़ दिया। थोड़ी सीढ़ियाँ उतर कर हॉल में आ गये। वहाँ तरह- तरह के पोज़ में मूर्तियाँ खड़ी थीं, जो एकदम असली लग रही थीं । देखने वालों और उन मूर्तियों में कोई फर्क नज़र नहीं आ रहा था। मूर्तियों में न्यूज़ पढ़ने वाली बारबैरा वॉल्टर्स, सुपर मैन बनने वाला क्रिस्टोफ़र रीव्ज़, फ़िल्मी अभिनेता जॉन ट्रिवोल्टा, टीवी प्रोग्राम देने वाली ऑपेरा विनफ्रे, हास्य कलाकार वूडी ऐलन के अलावा ढेरमढेर पुतले थे।
एक मंजिल नीचे उतरे तो वहाँ फ्राँस की क्राँति के दृश्य थे। लुई चौदहवें और उनकी रानी के कत्ल के दृश्य रोशनी व आवाज़ के साथ दिखाये जा रहे थे। मैडम तुसाद को शमशान भेजा जाता था ताकि वे मरे हुये लोगों के सिर इकठ्ठा कर लें और उन्हें मोम की आकृति में ढाल सकें। मृत लोगों के दृश्य बड़े क्रूर और डरावने लग रहे थे। आगे चल कर शीशे की गुफ़ा मिली। रास्ता सूझ नहीं रहा था, अचानक शीशों पर कुछ गोले से नज़र आये, उन पर हाथ रखते-रखते मैडम तुसाद के नव्वे साल की उमर वाले पुतले के पास पहुँच गये। एकदम बूढ़ी, कमर झुकी चार फीट की महिला थीं वे, पर अपने काम में कितनी माहिर रही होंगी कि जगह- जगह उनके मोम – म्यूज़ियम थे। आदमी शक्ल से नहीं काम से ही जाना जाता है। मेधा ख़ूबसूरती की ग़ुलाम नही होती।
आगे की गैलरी में पुतले बनाने की कला दर्शायी गयी थी। तरह- तरह के बदन, हाथ, बाल आँखें रखी थीं। बने- बनाये अंग भी थे। कुछ प्रसिद्ध व्यक्तियों के हाथ भी रखे थे, जिनमें माइकल जैक्सन और उसकी बहन- जेनेट- का हाथ भी था। एक बड़े हॉल में प्रविष्ट होने पर संसार के प्रसिद्ध व्यक्तियों के पुतले देखे। ग्राहम बैल, पोप पॉल सेकेंड, गाँधी जी, नैल्सन मंडेला, दलाई लामा, फिदेल कास्त्रो, डायना, पिकासो, स्कॉट फ़िट्ज़ेज़रल्ड (एक प्रसिद्ध लेखक ) मार्टिन लूथर किंग, जॉन एफ़ कैनेडी और भी कितने ही। आठवीं मंज़िल पर वैज्ञानिक आइंस्टीन का पुतला था। नीचे की मंज़िल पर नामी खिलाड़ियों के पुतले। तीन- चार सीढ़ी नीचे उतर कर एक प्लेट फ़ार्म पर ट्विन टॉवर के खंडहर का दृश्य बना था, तीन आदमी झंडा फहराते दिखाये गये थे।
हमारी निगाह एक ऐसी घड़ी पर पड़ी , जो उल्टी चल रही थी। मालूम हुआ कि शो शुरू होने वाला था। घड़ी में जब आठ बज जायेंगे तब शो शुरू होगा । थोड़े इंतज़ार के बाद शो शुरू हो गया, एक पर्दे पर बिल्डिंग के दरवाज़े पर दरबान का इधर से उधर आने-जाने का दृश्य दिखायी दे रहा था। घंटी बजने पर लोग पर्दे की बगल वाली गैलरी में चले गये, हम भी वहीं चले गय़े। बाहर दिखाई देने वाला दरवाज़ा यहाँ भी दिखायी दिया, पर दरबान का मुँह अब हमारी तरफ़ था। हम सभी यात्री एक बग्घी में बैठे जान पड़े, जबकि वास्तव में हम गोलाई वाली रेलिंग पकड़े खड़े थे, जो पर्दे पर बग्घी की रेलिंग मालूम हो रही थी। पर्दा बहुत बड़ा था, पूरी छत के गुम्बद पर फैला हुआ। छत पर आसमान का दृश्य था, तारे थे । कभी सूरज की रोशनी थी, लगता था कि हम बग्घी में खुले आसमान के नीचे हैं। यह नज़ारा कुछ- कुछ जयपुर के बिड़ला प्लैनेटेरियम से मिलता- जुलता था।
गाड़ीवान ने मुड़ कर हाय- हैलो की, दो- चार आत्मीय वाक्य बोले और अपनी यात्रा शुरू कर दी। सड़क पर उतरते ही पीछे वाले बस के ड्राइवर से कहा- सुनी हो गयी, आगे का ट्रैफ़िक जाम हो गया। उसे आगे का रास्ता नहीं मिल रहा था, पीछे से बेसब्र हॉर्न सुनायी दिये। झगड़ा सुलटा तो बग्घी न्यूयॉर्क के रास्ते नापने लगी। गाड़ीवान अपने घर के सामने से गुज़रा तो उसकी माँ ने हाथ हिलाया। सबसे पहले याँकी स्टेडियम पहुँचे, वहाँ 1960 का खिलाड़ी बेब रूथ था। कुछ देर तक सबने खेल देखा फिर बग्घी सैन्ट्रल पार्क में रुकी। यह न्यूयार्क का सबसे बड़ा पार्क है। चारों तरफ़ किलों से घिरा हुआ मैनहैटन के बीचोबीच बसा हुआ है। वहाँ पर एक स्केटिंग का रिंक था। वहीं कोचवान की गर्ल फ़्रेंड मिली। बग्घी 1960 की गलियों में चल पड़ी। फ़ुटपाथ पर तरह- तरह की सजी- धजी लड़कियाँ खड़ी थीं, यह हिस्सा रैड लाइट एरिया था। गाड़ी आगे बढ़ते ही मर्लिन मुनरो दिखायी दी। सफ़ेद फ़्रॉक में उसका जग- प्रसिद्ध सीन फ़ल्माया जा रहा था, जिसमें हवा से फ्रॉक उड़ता है और वह हाथों से उड़ने से रोकती है। बग्घी फिर गलियों से होकर सड़क पर आ गयी, सामने 1968 के चाँद पर जाने वाले यात्री अभी- अभी चाँद से लौटे थे व आगे के अनुसंधानों के लिये ले जाये जा रहे थे, नील आर्म-स्ट्राँग ने अपनी पत्नी को हाथ हिलाया, वह अन्य लोगों के साथ फ़ुटपाथ पर खड़ी थी। अचानक तूफ़ान आ गया, चारों तरफ़ धुँध सी छा गयी, जैसे ही आँखें कुछ देखने लगीं हमने अपने आप को एक थियेटर में एलविस प्रैसली के कार्यक्रम में पाया। उसका शो ज़ोर- शोर के साथ चल रहा था, गाने के साथ भीड़ मस्त थी।
बग्घी मुड़ कर टाइम स्कवायर जा पहुँची। नये साल पर क्रिस्टल बॉल गिरने वाली थी, उल्टी गिनती के साथ भीड़ चिल्लाने लगी। क्रिस्टल बॉल गिरते ही बेइंतहा शोर मचा। दर्शकों पर बर्फ़ की फुइयों जैसा कुछ ब्लो किया गया, ताकि दृश्य वास्तविक लगे। बर्फ़ हमारे बालों व कोटों पर जम गयी। गाड़ी फिर आसमान में उड़ चली। जगमगाता न्यूयॉर्क गुज़रने लगा। मुझे हवाई जहाज़ से देखा गया शहर याद आने लगा। अब ऊँची- ऊँची इमारतों में एम्पायर स्टेट, स्टैच्यू ऑफ़ लिबर्टी, ट्विन टॉवर तथा क्राइस्लर बिल्डिंग दिखी, जब स्टैच्यू निकली तो मन हुआ कि हाथ बढ़ा कर छू लूँ। समुद्र के पानी के ऊपर से चलती बग्घी म्यूज़ियम के दरवाज़े तक आ गयी। शो ख़त्म हो चुका था, कोचवान ने क्रिस्मस व नये साल की मंगल कामनाएँ दी, हालाँकि यह फ़िल्म शो था पर बग्घी वाला वास्तविक लग रहा था, जब तक सारे दर्शक हॉल से बाहर नहीं चले गये वह हाथ हिलाकर विदाई देता रहा।
फ़ुटपाथ पर आ कर टाइम स्क्वायर की तरफ़ चलने लगे। सड़कों पर चित्रात्मक ढंग से नाम लिखने वाले, तरह-तरह की कार्टून-पेंटिंग व पोर्ट्रेट बनाने वाले कलाकार देखे। खाने- पीने के सामान भी फ़ुटपाथों पर थे। बड़ी- बड़ी इमारतों पर पूरी- परी मंज़िल के टीवी स्क्रीन थे, पास ही ABC News studio था। सामने फैला पसरा बाज़ार था। भूख बहुत लग रही थी, इटैलियन रैस्टोरैंट में पिट्ज़ा खाया फिर -रॉकेफ़ेलर सैंटर- की तरफ़ चल पड़े। वहाँ चार मंज़िल बराबर ऊँचा क्रिस्मस ट्री 30,000 लाइटों से जगमगा रहा था। इतना बड़ा और इतना जगमगाता पेड़ मैंने कभी नहीं देखा था। भीड़ बहुत थी, तरह- तरह के लोगों में बहुत सारे हिंदुस्तानी भी नज़र आ रहे थे। एक बात और ग़ौर करने में आयी कि आज अंग्रेज़ लोग लोग कम दिखाई दे रहे थे, शायद वे अपने घर व बिरादरी में सबके साथ त्योहार का जश्न मना रहे होंगे। पेड़ के पास ही बहुत बड़ा स्केटिंग रिंक था। छोटे- बड़े, बच्चे- बूढे- जवान, औरतें- मर्द सब स्केटिंग करने में व्यस्त थे। रिंक में क्रिस्मस ट्री की तरफ़ ग्रीक देवता की सुनहरी मूर्ति थी ,ऐसा लग रहा था कि जैसे सोने से बनाई गई हो। इन का नाम Prometheus था। ये आग के देवता थे। पहाड़ की चोटियों जैसे शिल्प पर धातु का बना एक गोल रिंग था, जिस पर दोनों हाथ फैलाये कुछ उड़ते से इस देवता को दिखाया गया था। उनकी कमर का कपड़ा भी उड़ रहा था। हाथ में जलती हुई आग थी। पूरा शिल्प लाल- नारंगी आभा से जगमग था। रोशनी की जगर- मगर से पूरा रिंक नहाया हुआ था। सैंट पैट्रिक चर्च और सड़क के दोनों ओर घनी सजावट थी। मूर्तियों के द्वारा- स्लीपिंग ब्यूटी- की कथा को सुन्दरता से दर्शाया था। उन्हीं सड़कों पर एक रिक्शा चलता देखा, भारत के रिक्शे याद आ गये। कलकत्ते के हथरिक्शा जो एक हाथ से घंटी टुनटुनाते सवारी लिये भागते चले जाते थे और देश के बाकी जगहों के साइकिल रिक्शा पैडल मारते सरपट दौड़ते। बात- बात में भारत याद आता है।
क्रिस्मस की शाम की इस जगमगाती रौनक को देखने दुनियाँ भर के सैलानी प्रतिवर्ष यहाँ आते हैं। ईश्वर का धन्यवाद कि मुझे यह अवसर मिला जो न्यूयार्क के इस पवित्र त्योहार व लोगों का त्योहार के प्रति अत्यन्त उत्साह को देख पायी। शायद विश्व में सभी जगह लोगों का त्योहारों के प्रति आकर्षण होता है, आखिर यही तों वह शै है जो दिलों को उत्साह से परिपूर्ण रखती है और जीवन जगाये रखती है।

आभा सिंह

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