बारिश होते ही सबसे पहले सर उठाती है फुहाडिया की पौध। यूं यह खरपतवार है। अनावश्यक और व्यर्थ मानी जाती है लेकिन बहुत कम मित्रों को मालूम होगा कि इसके पत्तों का साग बनता है। बहुत स्वाद वाला और उदर रोग में गुणकारी। जन जातियों में इस साग का बड़ा प्रचलन रहा है।
अरावली पर्वतमाला से लेकर विंध्य और सह्याद्रि तक फुहाडिया खूब पैदा होते हैं। इसको फुमफड़िया, फुफाड़िया, पुपाडिया भी कहते हैं। कहीं चकवड़ भी कहा जाता है। वनस्पति विज्ञान में नाम है : Sicklepod.
मूंगफली जैसी पौध होती है लेकिन गुण, उत्पाद और फूल आदि सभी के लिहाज से अलग। इस पर मैथी जैसी फली आती है। इस बीज को पीस कर अलसी चूर्ण की तरह काम में लिया जा सकता है।
बारिश शुरू होते ही इसके कोमल पत्तों को चुंट चुनकर भाप लें। एक मुट्ठी पत्तों की साग दो जनों के लिए पर्याप्त होती है। फिर तिनकों, फांस आदि को अलग कर दें और हींग के चूर्ण को बुरकाकर दोनों हाथों मसल दें। रुचि के अनुकूल मसाला डालकर छोंक दें…पानी सूख जाए तो समझें कि हो गई सब्जी तैयार !
रोटी का एक कौर कुछ साग, एक कौर और कुछ साग, एक कौर और कुछ साग… यही खाने का क्रम है। खाते जाएं और जीभ चलाते जाएं। और हां, भा जाए तो जरूर बताएं …
•श्रीकृष्ण “जुगनू”