लघुकथा –
“तुम कौन ?” लड़की का स्वर
” मैं …मैं हूँ , तुम ?” लड़के की आवाज़
” जैसे तुम वैसे ही मैं भी सिर्फ ‘ मैं ‘ हूँ ।” पायल की झंकार सा स्वर ।
” सुनो ! तुम बेहद खूबसूरत हो …।” आसक्त स्वर
” तुम भी तो कितने हैंडसम हो , अपनों से , लगते हो …।”
” अच्छाsss” हैरत और प्रसन्नता भरा लड़के का स्वर ।
” तुम और मैं एक हो सकते हैं यानि … संसार बसा सकते हैं अपना ? ”
कुछ झिझकता हुआ स्वर । फिर मौन स्वीकृति का आदान – प्रदान ।
” मैं और तुम अब हम कहलाने लगेंगे । ”
प्यार में पागल पक्षियों का , तिनकों से घोंसला बनाने का उपक्रम ।
” हाय सच्ची ! ये क्या हमारी दुनिया है ? विश्वास नहीं होता न ।”
” हाँ – हाँ ये तो हमारा ही ‘ घर ‘ है …। कानों में मानो नूपुर बज उठे हों ।
” यहाँ हमारे ग़म और खुशियाँ रहेंगी ।” सधी हुई आवाज़ ।
” बोलो तो ये कौन ?” मैगज़ीन में बच्चे की तस्वीर पर अँगुली टिका दी गई ।
” हमारा प्यार … …।” शरमा के लड़की गुड़हल सी हो गई थी ।
तभी मौसम बदल गया ।
आँधी आने के आसार …।
” मैं नौकरी करूँगी ।”
“कर लो ।”
स्वतंत्र होने की पहली छटपटाहट ।
” ये लो मेरी तनख्वाह ।”
तुम्हारी ? यानि तु..म्हा..री…केवल ।
शब्दों के आघात । छेदने – भेदने की होड़ । अहम् की तुष्टि का भ्रम ।
किनारा दरकने लगा था ।
” चलो तुम्हारी तरक्की हो गई , अच्छा हुआ ।”
” लड़कियाँ बड़ी जल्दी खुद को साबित कर देती हैं । ” बाॅस को मस्का लगाना तुम मुझे भी सिखा दोगी क्या ? ”
” अब से हाउस रेंट फ़िफ़्टी – फ़िफ़्टी ।”
” स्मोकिंग पर फिजूलखर्ची हो रही है , मँहगा शग़ल है । कुछ सोचो यार । ”
” तुम्हारा पार्लर का खर्चा कितना बढ़ गया है ।”
तुम्हारी स्मोकिंग बंद
तुम्हारे पार्लर का खर्च आधा
“एल .सी .डी . तुम्हारी कमाई का …।”
“आई फ़ोन मेरा , कुछ ख़राबी दिखा रहा है । क्या कर दिया क्या तुमने इसमें ? ”
“ये मेरा …”
“वो तुम्हारा …”
” मैं…तुम ”
” तुम … मैं मैं मैं ।”
तुम…तुम हो , मैं भी सिर्फ मैं ही हूँ ।
तू तू मैं मैं
तू तू – मैं मैं …।
अधूरे निर्मित नीड़ के तिनके बिखरने लगे थे । हवा भी तेज़ आंधी का रूप अख़्तियार कर चुकी थी …।
– विभा रश्मि