जब जब हुआ अधर्म प्रचंड, और धर्म की हानि।
हुआ प्राकट्य प्रभु का, विधर्मियों के विनाश की ठानी।।
भादौ कृष्ण अष्टमी तिथि, अर्धरात्रि काली घनघोर।
द्वापर युग में हुए थे अवतरित हमारे भगवन नंदकिशोर।।
देवकी मैया के गर्भ से प्रभु जब मथुरा भूमि पधारे।
कुदृष्टि से अधर्मी कंस की, वसुदेव जी ने लाल को बचाया।।
मात-पिता को कारागृह में, बंदी कर दिया दुष्ट कंस।
कष्ट सहे पिता वसु जी बालक, सुरक्षित किया मृत्यु दंश।।
घोर अंधेरी रात थी वह वर्षा झड़ी, लग रही थी घटाटोप।
रखा टोकरी हृदयांश को झेले, न नराधम कंस का कोप।।
घोर रात वर्षा की झड़ी थी,यमुना नदी थी चढ़ी परवान ।
चरण पखार नन्हे से प्रभु के, मैया यमुना का मिटा उफान।।
जन्म लिया मथुरा पले गोकुल, नंद यशोदा के धाम।
उज्जयिनी सांदीपनि शिक्षा पाई, मधुराधीश पाया नाम।।
देवकी पुत्र यशोदा के ललना, राधा के पिय तुम हो ईश्वर।
कर्म की महिमा सिद्ध कर दी, गीता का संदेश देकर।।
विष्णु के हैं अवतार साक्षात्, वे चक्र सुदर्शन धारी हैं।
कंस पूतना शिशुपाल जैसी अनेकों , राक्षसी आकृतियाँ संहारी हैं।।
आज जन्मोत्सव उस कान्हा, का जो जन जन का दुलारा है।
हमने अपने घर आंगन को, स्वागत में उसके संवारा है।।
अर्ध रात्रि बारह बजे हम, सब मिल बाँटेगे भरपूर मिठाई।
प्यारे लड्डू गोपाल रूप में, प्रभु को जन्म दिन की हार्दिक बधाई।।
अन्याय को कभी न सहना, असत् को सदा मिटाना है।
है यही संदेश कृष्ण का, इसे जन जन तक पहुंचाना है।।
रंजना माथुर
अजमेर (राजस्थान)
मेरी स्वरचित व मौलिक रचना