कुछ इस तरह विचारों का बबंडर उठने लगा है ।
आक्रोश विचारों से मन अब जलने लगा है ।
चारों ओर फैली इन विसंगतियों से अब हर रिश्ते से विशवास उठने लगा है ।
हर रिश्ते को शर्मसार करती हुई खबरों से हवाओ को भी अब छिपने का मन करने लगा है ।
सूर्य ने दे रोशनी, चाँद ने शीतलता देकर जग को सुन्दर उपवन बनाया था ।
काटो का श्रृंगार कर अब वसुंधरा भी कहने लगी-
भूल गए मानव अपनी मर्यादा को इंसान की इंसानियत खोने लगी।
माँ-बाप,भाई-बहन कोई भी रिश्ता सुरक्षित है नहीं।
ये सोच कर दिल घबराने लगा
हे प्रभु! अब राम से अच्छा मुझे रावण लगने लगा ।
रिश्तों की मर्यादा का वो उलघन करता नहीं ।
राम की सीता पर वो जबाजसती करता नहीं ।
युद्ध को स्वीकार कर ले अपनी जिद्द पर,
पर वो सीता का सतीतव भंग करता नहीं ।
सुरक्षित थी मैं उसके राज्य में पर अब हर पल मुझे गुम होने का डर लगने लगा है ।
डॉ मनीषा दुबे