जानिए हरितालिका तीज की व्रत विधि एवं महत्व
भाद्रपद की शुक्ल पक्ष के तृतीया तिथी को हस्त नक्षञ में कुमारी तथा सौभाग्यवती स्त्री पतीसुख को प्राप्त करने के लिए करती हैं । इस व्रत को तीज हरतालिका तीज, अखंड सौभाग्यवती व्रत आदि नाम से जाना जाता हैं । इस व्रत को करने से स्त्री को अखंड सौभाग्यवती का वरदान तथा मोक्ष की प्राप्ती होती है ।
1. व्रत का महत्व
यह व्रत वास्तव में “सत्यम शिवम सुंदरम” के प्रति आस्था और प्रेम का त्यौहार हैं लेकिन भारत के कुछ स्थानो में कुवारी लडकिया भी मनचाहा वर पाने के लिए यह व्रत रखती हैं ।
2. पुजन सामग्री
पंचामृत, दिपक, कुमकुम ,अबीर,जनैऊ, वस्त्र, श्रीफल, कलश,बेलपत्र, शमीपपत्र, धतुरे का फुल एवं फल, अकाँव का फुल, रेत, केले कापत्ता, तुलसी. माता गौरी के लिए सुहाग का सामान आदि ।
3. हरतालिका व्रत विधी एवं नियम
यह व्रत 3 दिन का होता है । प्रथम दिन व्रती नहाकर खाना खाती हैं जिसे नहा खा दिन भी कहा जाता हैं तथा दुसरे दिन व्रती दिनभर उपवास करके संध्या समय में स्नान करके तथा शुध्द वस्त्र धारण कर पार्वती तथा शिव की मिट्टी /रेत की प्रतिमा बनाकर गौरी शंकर की पुजा करती हैं । तिसरे दिन व्रती अपना उपवास तोडती हैं। चढाये गये पुजन में प्रयूक्तरेत आदि को जलप्रवाह करती हैं ।
इस पुजा में शिव गौरी एवं गणेश की प्रतिमा रेत की अपने हाथो से बनानी चाहिए । रंगोली तथा फुल से सजाना चाहिए । उसके बाद तीनो प्रतिमाओ को केले के पते स्थापित करना चाहिए ।
उसके बाद कलश के उपर श्रीफल अथवा दिपक जलाना चाहिए । कलश के मुह पर सफेद धागा बांधना चाहिए । घडे पर सतिया बनाकर उस पर अक्षत चढाये। उसके बाद जल चढाना चाहिए ।फिर कुमकुम ,हल्दी, चावल, पुष्पसे कलश का पुजन करना चाहिए । कलश पुजा के बाद शिवजी माता गौरी की पुजा करनी चाहिए । पुरे विधी विधान से पुजा करने के बाद हरतालिका व्रत की कथा पढनी या सुननी चाहिए । कथा पढने/सुनने के बाद सबसे पहले गणेशजी की आरती,शिवजीकी आरती, पार्वती की आरती करनी चाहिए । आरती के बाद इस दिन रातभर जागकर गौरी शंकर की पुजा किर्तन, स्तूती आदी करनी चाहिए । इस व्रत का महत्व ही यही हैं कि जो स्त्री तथा कन्या पुरी निष्ठा के साथ व्रत करती हैं! उसको शिवजी मनोवांच्छित फल प्रदान करते है ।