हम सब अंदर से बेईमान हैं।नाराज़ ना हों।एक बार चिंतन करके देखें। अपनी सोच का विश्लेषण करके देखें। ईमानदारी से अपने विचारों की चीरफाड़ करके देखें तो पायेंगे कि यदि हम पर कानून की, समाज की या कहें दूसरों की नज़र न हो ,यदि हमें किसी की प्रतिक्रिया की परवाह ना हो तो हमारा हर पल का व्यवहार कैसा होगा?
हम लाल हरी पीली बत्ती की तरफ देखेंगे तक नहीं और एक बेलाग बैल की तरह अपनी राह बनाने में लग जायेंगे।
हम बेईमान ही नहीं स्वार्थी भी हैं।अपनी छोटी से छोटी सुविधा के लिए दूसरों को बडे़ कष्ट में डाल देते हैं।
अपने बारे में यह शब्द बेईमान ,स्वार्थी,लालची सुनना कोई भी पसंद नहीं करता,पर यह अवगुण हर मनुष्य में हैं।यदि ऐसा नहीं होता तो इन शब्दों का प्रयोग हम अपनी रोजमर्रा की भाषा में नहीं करते।
हम इन शब्दों का प्रयोग अपने लिए किए जाने के बारे में सोचना भी नहीं पसंद नहीं करते। हम खुद भी खुद को यह संज्ञा नहीं दे सकते पर सच्चाई यह है कि हम ऐसे ही हैं।
सोचने की बात है कि फिर क्या किया जाए। मेरी नज़र में हम अपना विश्लैषण स्वयं करें। प्रतिदिन के विचारों तथा कार्यों का विष्लेषण रात्री सोने से पूर्व करें। यह विष्लेषण करेगा मुझमें। मुझे अपनी सोच अपने व्यवहार को सुधारने के लिए किसी गुरु की आवश्यकता नहीं होगी।स्वयं मेरी चेतना रखेगी मुझ पर हर पल नज़र।रोकेगी,टोकेगी, देगी सीख। इस गुरु से अवश्य मिलें प्रतिदिन।
- स्नेह प्रभा परनामी