गोस्वामी तुलसीदास कैसे अक्षर लिखते थे?
इसका उदाहरण एक पंचनामा है जिस पर तुलसीदास के हाथ की लिखी हुई छ: पंक्तियां कही जाती हैं। इसको तुलसीदास के एक मित्र टोडरमल के पुत्र और पौत्र के बीच जायदाद के बंटवारे के लिए लिखा गया था। यह संवत् 1669 के क्वार मास के शुक्ल पक्ष की 13 वीं तिथि का है और देवनागरी तथा फारसी लिपि में है। हालांकि इसमें तुलसी दास का नाम या दस्तखत नहीं है।
बाबू श्यामसुंदरदास और श्री बड़थ्वाल ने लिखा है :
यह पंचनामा 11 पीढ़ियों तक टोडरमल के वंश में रहा। 11 वीं पीढ़ी में पृथ्वीपालसिंह ने इसे वाराणसी के काशिराज को दे दिया। यह वहीं सुरक्षित रहा।
गत मार्च में प्रयाग के एक एडवोकेट श्री अशोक मेहता जी ने इसे पढ़ने के लिए मुझे मेल से भेजा। सौभाग्य से मुझे प्रिंट लेकर इसे पढ़ने का अवसर मिला और बाद में मैंने इसके फारसी पाठ को भी खोज लिया।
गोस्वामी जी ने लिखा है :
श्रीजानकी वल्लभो विजयते
द्विश्शरं नाभिसंधत्ते द्विस्स्थापयति निश्रितान्।
द्विर्ददाति न चार्थिभ्यो रामो द्विर्नैव भाषते।। १।।
तुलसी जान्यो दशरथहि धरमु न सत्य समान।
रामु तजो जेहि लागि बिनु राम परिहरे प्रान।। १।।
धर्मो जयति नाधर्म्मस्सत्यं जयति नानृतम्।
क्षमा जयति न क्रोधो विष्णुर्जयति नासुर।। १।।
( शेष फिर कभी…)
संदर्भ : गोस्वामी तुलसीदास जयंती / २०२०
— श्रीकृष्ण ‘जुगनू’