“यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः”
रंजना माथुर
अजमेर (राजस्थान)
जहाँ हमारे महान् भारत की वह पावनतम संस्कृति समाज में नारी देवी के पुनीत रूप में स्थापित थी वहीं समाज आज पग-पग पर नारी की दुर्गति की घटनाओं से भरा पड़ा है।
बलात्कार, हत्या, दहेज़ हेतु प्रताड़ना, वेश्यावृत्ति में धकेलना आदि आदि।
स्त्रियों के शारीरिक शोषण व अत्याचार के प्रकरणों में दिन ब दिन वृद्धि हो रही है।
हम सर्व सम्मति से समाज के पुरुष वर्ग को इस अत्याचार के लिए काफी हद तक उत्तरदायी मानते हैं।
अब प्रश्न यह उठता है कि
क्या नारी की इस दुर्दशा के लिए शत- प्रतिशत जिम्मेदारी पुरुष की ही है या नारी के इस विनाश में कुछ हद तक स्वयं उसका भी योगदान सन्निहित है ?
मेरे विचार में इसका उत्तर है हाँ!
हाँ ! एक सीमा तक नारी भी इन दुर्घटनाओं के लिए उत्तरदायी है और उसमें सबसे बड़ी भूमिका है ‘नारी की वेशभूषा’ की।
आज की आधुनिक पीढ़ी इसे अपनी स्वतंत्रता और व्यक्तिगत अधिकार मानती हैं। उनका कथन है कि यह हमारा व्यक्तिगत मामला है कि हम क्या पहनें। माना कि यह उनका व्यक्तिगत अधिकार है किन्तु उन्हें इस बात को समझना चाहिए कि आपकी व्यक्तिगत आज़ादी को मद्देनजर रखकर धारण की गयी वेशभूषा आपकी सुरुचि, शालीनता, मर्यादा व नारी गरिमा के अनुरूप है अथवा कहीं वह आपको सार्वजनिक ध्यानाकर्षण का केन्द्र तो नहीं बना रही।
नर और नारी की शारीरिक संरचना भिन्न-भिन्न होने के साथ-साथ नारी को अपनी शारीरिक कोमलता के कारण विशेष संरक्षण व सुरक्षा की आवश्यकता होती है। इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुए हमारे समाज में नारी को एक विशेष सम्माननीय व सुरक्षित स्थान प्रदान किया गया था।
वर्तमान में पाश्चात्य सभ्यता व संस्कृति और पश्चिमी रहन सहन के सान्निध्य में हमारे युवा पीढ़ी की नारी के मन मस्तिष्क में एक अजीब सी क्रांति ला दी है और स्वतंत्रता की परिधि में स्वच्छंदता को लाकर खड़ा कर दिया है। उन्हें इस विषय में किसी की भी सलाह एक बड़ा हस्तक्षेप या अधिकारों के हनन के समान महसूस होता है।
आपने कभी किसी भी उत्सव या समारोह में पुरुषों को अल्पवस्त्रों में देखा ?
कतई नहीं। ठीक इसके विपरीत आपने हर समारोह में अनेक महिलाओं युवतियों को इस हुलिए में अवश्य देखा होगा क्योंकि यह अब अभिजात्य वर्ग और आधुनिकता का परिचायक बन गया है। सोच बन गई है कि हम जितने अधिक पाश्चात्य लिबास या अल्प वस्त्रों से सुसज्जित होंगे अपनाएंगे उतने ही आज़ाद ख्याल माने जाएंगे। यही आज़ाद खयाली नारी के लिए घातक सिद्ध होती है यह किसी से छिपा नहीं।
मैं एक नारी के रूप में हमारे नारी समाज के उस वर्ग से प्रत्युत्तर की आशा करती हूँ जो
आधुनिकता और व्यक्तिगत आज़ादी की दुहाई देकर स्वयं के लिए और समस्त नारी जाति के लिए विपत्ति को आमंत्रण न दें।
अपनी मर्यादा पूर्ण गरिमामय महान् भारतीय संस्कृति की महानता को अक्षुण्ण रखें और उसमें प्रतिपादित नारी गरिमा के स्वरूप को विकृत न होने दें।