आजकल पाश्चात्य संस्कृति की नकल पर हमारे देश में नशे का प्रचलन दिन-पर-दिन बढ़ता जा रहा है। यँू तो भारत में इसका प्रचलन अत्यन्त प्राचीन रहा है। इतिहास इस बात का गवाह है कि समुद्र मंथन में जो नौ रत्न निकले थे समुद्र से इनमें एक सोम रस भी था। परन्तु आज भारत में नशा एक कुरीति के रूप में छा गया है। प्राचीन समय में मुख्यतः पुरुष ही नशा करते थे परन्तु स्त्री एवं बच्चे भी सभी तरह के नशे के आदी होते जा रहे हैं, जो हमारे परिवार एवं देश को प्रतिदिन पतन के गर्त में ढकेल रहे हैं। आज बर्थडे पार्टी, मैरिज पार्टी, न्यू ईयर पार्टी, हर तरह की पार्टी में नशा खुलेआम प्रचलन में है। सस्ता नशा जैसे कच्ची शराब, भाँग, गाँजा, चरस, स्प्रिट, तम्बाकू आदि ने इनसानों को जीते जी मार दिया है। गला, मँुह और फेफड़े के कैंसर से मरने वालों की भारी मात्रा है। अमीर अपनी शानो-शौकत एवं मनोरजन के लिए पीते हैं। गरीब अपनी विपन्नता छिपाने के लिए। महिलाएँ भी तरह-तरह के नशे करने लगी हैं। परिणामस्वरूप अविकसित बुद्धि एवं अविकसित शरीर के बच्चे पैदा हो रहे हैं। भला उनका भविष्य क्या होगा?
नशा इनसान को न सिर्फ मानसिक रूप से बल्कि धीरे-धीरे शारीरिक रूप से भी पंगु बना देगा। नशा इनसान को अचेतन अवस्था में लाता है। यह दिल-दिमाग एवं विवेक तीनों के लिए बाधक बनता है। इनसान इसके खाने से धीरे-धीरे मृतप्राय-सा होने लगता है। हालाँकि सरकार इसे रोकने का भरसक प्रयास कर रही है परन्तु असफल है।
वर्तमान में फिल्मी दुनिया के सितारों पर नशों का जो नशा चढ़ा है उसने तो देशवासियों को अजूबू की दुनिया में लाकर खड़ा कर दिया है। जो सितारे कल तक भारत की युवा पीढ़ी के रोल माॅडल हुआ करते थे आज उनके कारनामे देखकर नागरिक हक्के-बक्के रह गये है। मानों फिल्मी दुनिया से नैतिक मूल्य, इनसानियत सभी गायब हो गये है। यही हाल रहा तो फिल्मी दुनिया अपने मौलिक अधिकारों को भी खो देगी। अण्डरवल्र्ड से इन लोगों का सम्पर्क होने के कारण देश गुलामी के कगार पर वापस खड़ा हो जायेगा जिसका मुख्य कारण फिल्मी दुनिया ही होगी। सरकार को शीघ्रातीशीघ्र कड़े कदम उठाकर इस गंदगी का सफाया करना होगा। सरकार द्वारा देश की उन्नति के लिए उठाये गये सारे श्रम और कानून अपना अस्तित्व खो देंगे।
कहा गया है, इनसान की जिन्दगी स्वयं ही एक नशा है। यह अलग बात है कि वह नशे रूपी जिन्दगी को पीना नहीं जानता। और इस तरह के सस्ते नशों में अपना जीवन व्यर्थ कर रहा है। अगर हम सबको नशा ही करना है तो हमें सद्भावनाओं का, सहयोग का, समानता का, सुसंस्कारों का, समर्पण का एवं सहयोग का नशा करना चाहिए ताकि हम धैर्यवान, विवेकी, जागरूक, सद्गुणी, समभावी एवं अपने देश के एक सर्वगुण-सम्पन्न नागरिक बन अपने परिवार, समाज एवं राष्ट्र के उत्थान में योगदान दें।
तुलसीदास ने रामायण में लिखा भी है-
बड़े जतन मानस तन पावा।
सुर दुर्लभ मुनि ग्रन्थन गावा।।
-डाॅ. कृष्णा रावत
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