मेरे जीवन का प्रेरणादायक दिन
आर्यमान सिंह
मुझे तब तक ड्रम बजाते हुये चार साल हो चुके थे, जब मेरे माता- पिता का तबादला कोटा से इलाहाबाद हो गया था। मैंने अपने नये दोस्तों को बताया कि मैं ड्रम बहुत अच्छा बजाता हूँ और अब मेरे सीखने के लिये ज़्यादा कुछ बचा नहीं है। इस तबादले के कारण मुझे कोटा में अपनी ड्रम की कक्षा को छोड़ना पड़ा था, परन्तु मेरे माता- पिता को लगता कि मुझे अभी भी बहुत कुछ सीखना है। भले ही उन्हें ताल आदि की कोई समझ नहीं थी किन्तु फिर भी उन्होंने मुझे ड्रम की कक्षा में भरती करा दिया।
वह जुलाई 2014 का समय था जब ड्रम के शिक्षक मेरे घर पर मेरी कला को परखने के लिये आये थे ताकि वे तय कर सकें कि मैं उनका शिष्य बनने के लायक हूँ या नहीं। मुझे मेरी कला पर बहुत अभिमान था और इसीलिये मैंने ड्रम बहुत तेज़ ताल में बजाये। थोड़ी देर सुनने के बाद उन्होंने मुझे रुकने के लिये कहा और वे बजाने के लिये बैठ गये। उन्होंने वही ताल बजायी जो मैं बजा रहा था परन्तु उसमें उन्होंने कुछ बदलाव भी कर दिये थे। मुझे लगा कि ये मेरी बेइज़्ज़ती है और इसलिये मैंने एक और ताल बजायी, परन्तु वे उसे भी बजाने में सफल थे। उन्होंने कहा कि मेरे पास हुनर तो है, बस उसको थोड़ा निखारने की ज़रूरत है. इसीलिये वे मुझे सिखाने को तैयार हैं। वे कल से शुरू करेंगे।
कक्षा के पहले दिन मैं ज़्यादा ख़ुश नहीं था, क्योंकि उन्होंने मुझे मेरे ही वाद्य पर हराया था, परन्तु उनके आते ही सब कुछ बदल गया। उन्होंने मुझे सबसे आसान ताल बजाने को कहा, जो मुझे पहले से ही आती थी। मैं बजाने में ज़्यादा शौक नहीं दिखा रहा था। मेरे अध्यापक को जल्द ही समझ में आ गया कि मेरी परेशानी क्या थी ? उन्होंने मुझसे ड्रम स्टिक ले ली, फिर वही ताल वापिस बजायी जो मुझे बजाने को कही गयी थी। उन्होंने फिर इस ताल में और बेस डाल दिया, स्नेयर को बढ़ा दिया, साथ में लगातार सिबल भी डाल दिया। ताल बहुत सुन्दर ढंग से ख़तम की गयी। इसके बाद एक और ताल बजाना शुरु किया, परन्तु इस बार वह हाई- हैट पर थी और साथ में थोड़ा- थोड़ा स्नेयर, कुछ देर में पूरा स्नेयर पर, फिर साइड टौम पर और फिर टौम पर। यह सब कुछ साथ में लगातार बेस के साथ बजाया। जल्द ही उन्होंने चार गिनती की ताल को रॉक में परिवर्तित कर दिया, फिर पॉप में, फिर मेटल में और फिर हैवी मेटल में, इसके बाद जैज़ बजाया। सबसे अच्छा परिवर्तन वह था जब उन्होंने यूरोपियन तालों को अफ़्रीकन तरीके में बदल दिया।
वादन के बाद उनका सोलो देख कर मैं ङक्का- बक्का रह गया था। उन्होंने मुझे बताया कि इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि तुम क्या बजाते हो परन्तु कैसे बजाते हो यह ज़रूरी है। यह कभी नहीं सोचना कि यदि कोई ताल रॉक है तो वह जैज़ में नहीं बज सकती। यहां तक कि किसी एक प्रकार के तरीके के लिये कोई ख़ास ताल नहीं है, बस अपनी ख़ुद की ताल बना कर अपने मन की भावना अपने वाद्य के द्वारा प्रकट करो। यह कभी नहीं सोचना कि तुम एक प्रकार की तालों को अपनाने वाले ड्रमर बनो बल्कि अनेक तालों को अपनाने वाले ड्रमर बनो। केवल अनेक प्रकार की तालों को अपनाने वाले ड्रमर ही कह सकते हैं कि उनको ड्रम की चाह है। वे यहाँ पर ही नहीं रुके, उन्होंने मुझे बड़ी-रिच को ड्रम बजाते हुये सुनाया। यह ताल आज तक का सबसे अच्छा ड्रमर बजाता है। मैं बड़ी रिच की तालों को सुन कर चौंक गया था। मैंने कभी नहीं सोचा था कि ड्रम को इस प्रकार भी बजा सकते हैं। मैं इससे सचमुच बहुत प्रभावित व प्रेरित हुआ था। मैंने अपनी कला को बहुविज्ञ बनाने की ओर काम करना शुरु कर दिया। मेरी सीखने की चाह ने मेरे अंदर जोश भर दिया। सच में यह मेरा आजतक का सबसे प्रेरणादायी दिन था।
मैंने अपने अध्यापक श्री अंशुमन सायमन के साथ दो साल और अभ्यास किया, फिर मेरे माता- पिता का तबादला जोधपुर हो गया। आज मैं ड्रम पर जैज़, रॉक, पॉप, मेटल और हैवी मेटल डबल बेस के साथ और ड्रम- ब्रश के साथ बजा सकता हूँ। मेरे गुरु मुझे आज भी फ़ोन करते हैं और अपने विडियो को भेज कर सिखाते हैं। ख़ुद को बहुविज्ञ की आदत ने मुझे बाजों को जानने के लिये प्रेरित किया। अब मैं तबला, कौंगो, बौंगो भी बजा सकता हूँ, पर मुझे आज भी लगता है कि मैं और भी सीख सकता हूँ, चाहे कितना भी अच्छा क्यों न होंऊँ, और सीखना ही चाहिये।
जब मैं स्मृतियों में जाता हूँ तो वह दिन मेरी आँखों के सामने प्रेरणादायक याद के रूप में आ जाता है।