नदी के तीर वो आती है
भर के नीर ले जाती है
उंची नीची राहों में
धीरे धीरे कदम बढ़ाती है ।।
भोर भये गागर सर पर
अपने घर से वो जाती है
सूखे कंठ तर करती
जल ही जीवन बताती है ।। नदी …
जल भर कर चलती घर को
राह में रुक रुक कर
कुछ पथिकों की प्यास
बुझाती है ।। नदी …
पथरीली राहों में चलते
कभी चुभ जाये यदि कांटे
आप निकाल , सहजभाव से
फिर मुस्काती है ।। नदी …
वो दिवस का आरंभ है
अपने घर का स्तंभ है
छाया देती है वो सबको
कोटि कोटि सुख पहुँचाती है ।। नदी…
रश्मि शुक्ल
रीवा (म.प्र.)