वतन पर मर मिटना शहीदी मचान है।
देश पर जान न्यौछावर करना बान है।
हिमालय सा अडिग मन खड़ा पहरेदार है।
ऊँचाईयों को छूने की तमन्ना शान है।
किसानों के अथक परिश्रम से धरा गुलज़ार है।
खेत-खलिहानों में उगा लहरदार धान है।
वेदों के पवित्र पृष्ठों से मनुज विभूषित है।
संतों की बानी-कथाओं का पूरा सम्मान है।
धरती की माटी मस्तक की शोभा निराली है।
जवानों की शूरवीरता से अमन का अभिमान है।
गंगा-जमुना सभ्यता-संस्कृति का आधार है।
इनकी लाज निभाना हर नागरिक का मान है।
तिरंगे के प्रत्येक रंग की अपनी नीति है।
इन्हें सँवारकर रखना नैतिकता की खान है।
वीरांगनाओं के बलिदान की कहानियों
सुना रहीं यही वतन-परस्ती की आन है।
अर्चना माथुर
(अर्चनालोक)
जयपुर , राजस्थान