स्त्री हूँ मैं
अभिमान नहीं वरन्
आत्मविश्वास लिये
खड़ी हूँ मैं—
समाज को सुद्दृढ़
करने की कला भी
मेरे ही भीतर है
कुसंस्कारों एवं रूढ़ि वादिता
से मुक्ति पाने के लिये
शिक्षित होना ही होगा
अपने अधिकारों की लड़ाई
जो लड़नी है अभी
अपनी अस्मिता को
बचाने के लिये
जीवन में संघर्ष की लौ
मुझे ही जलानी है
दुराचार,व्याभिचार
या बलात्कार
जैसे शब्द अब
मेरी छवि को
धूमिल ना कर पायेंगे,
बहुत सह लिया मैने
कोमलांगी नारी का
मन मोहक स्वरूप
अब मुझे कमजोर
ना कर पायेंगे
घर परिवार की
जिम्मेदारियाँ निभाते हुए
उठ खड़े होने का
साहस अब तो
मुझे पूर्ण रूप से
जुटाना ही होगा ,
माँ दुर्गा से
शक्ति रूप का
वरदान लेकर
दानवों एवं दुर्जनों को
अपना रुद्र रूप अब
दिखाना ही होगा
स्त्री हूँ मैं….
रेणु चन्द्रा माथुर