बिन तेरे मेरी शाम नहीं
नहीं नहीं ढलती।
इस ख़याल में दिन गुज़रता है
कि शाम तेरे संग गुज़र होगी।
तेरे वक़्त पर ना लौटने से
बिन तेरे मेरी शाम नहीं,
नहीं, नहीं ढलती।
रोक लेते हैं इस उम्मीद पर,
क़दमों को कहीं भी जाने से।
तेरे लौटने पर तुझसे चंद बातें
चाय की चुस्कियों संग होगी।
तेरे शाम तलक ना लौटने पर,
चाय की तलब नहीं होती।
बिन तेरे मेरी शाम नहीं,
नहीं, नहीं ढलती ।
वक़्त ज्यों ज्यों गुज़रता है,
दिल परेशान होता है ।
दिल की बेचैन हालत,
फिर हमसे नहीं संभलती।
बिन तेरे मेरी शाम नहीं,
नहीं, नहीं ढलती।
सजन !
मेरे वक़्त पर घर लौट आया करो।
रोज रोज ये देरी हमें भली नहीं लगती।
बिन तेरे मेरी शाम नहीं,
नहीं, नहीं ढलती।
डॉ•अंजु सक्सेना